Thursday, 14 July 2016

गुजरात का नल सरोवर

गुजरात का नल सरोवर है सैलानी परिंदों की जन्नत

गुजरात का नल सरोवर भारत में ताजे पानी के बाकी नम भूमि क्षेत्रों से कई मायनों में भिन्न है। सरदियों में उपयुक्त मौसम, भोजन की पर्याप्तता और सुरक्षा ही इन सैलानी पक्षियों को यहां आकर्षित करती है। सरदियों में सैकड़ों प्रकार के लाखों स्वदेशी पक्षियों का जमावड़ा रहता है। इतनी बड़ी तादाद में पक्षियों के डेरा जमाने के बाद नल में उनकी चहचाहट से रौनक बढ़ जाती है। नल में इन्हीं उड़ते सैलानियों की जलक्रीड़ाएं व स्वर लहरियों को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहां प्रतिदिन जुटते हैं। पर्यटकों के अतिरिक्त यहां पक्षी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, शोधार्थी व छात्रों का भी जमावड़ा लगा रहता है तो कभी-कभार यहां पर लंबे समय से भटकते ऐसे पक्षी प्रेमी भी आते हैं जो किसी खास पक्षी के छायाचित्र भी उतारने की तलाश में रहते हैं।
अनूठा है नल 

नम भूमि क्षेत्र नल सरोवर अपने दुर्लभ जीवन चक्र के लिए जाना जाता है जिस कारण यह एक अनूठी जैवविविधता को बचाए हुए है। नल का वातावरण अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं के लिए उपयुक्त है और एक भोजन श्रृंखला बनाता है। मूलत: यह वर्षा जल पर आश्रित एक नम क्षेत्र है। गर्मी में जब यह सरोवर सूखने के कगार पर होता है तो मानसूनी वर्षा इस सरोवर को नई जिंदगी देती है। इसके जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा इसे लबालब कर देती है। बरसात की समाप्ति के बाद लगभग मृत प्राय: इस सरोवर में धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटने लगती है। प्रारंभ में पहले इसमें सूक्ष्मजीव पैदा होते हैं उसके बाद छोटे कीट-पतंगे पैदा होते हैं या आस-पास से आकर यहां शरण लेते हैं। वातावरण की अनुकूलता के साथ आस-पास से व जमीन में बचे रह गए अंडों से कई प्रकार का जलीय जीवन तेजी से विकसित होता है। इनमें अनेक प्रकार की मछलियां उत्पन्न होने लगती हैं जिनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगती है।

मछलियों का लालच पक्षियों को यहां आकर्षित करता है। आरंभ में यहां छोटे पक्षी ही आते हैं किन्तु जब नवंबर में मछलियां बड़ी हो जाती हैं तो भोजन की प्रचुरता व उचित वातावरण पाकर प्रवासी जल पक्षी भी यहां आने लगते हैं। दिसंबर व जनवरी में इनकी संख्या अधिकतम होती है। फरवरी के अंत में नल में भोजन व जलस्तर में कमी व गर्मी के बढ़ने के चलते मेहमान पक्षी अपने मूल घरों को लौटने लगते हैं। मार्च में जब क्षेत्र में पारा 40 डिग्री तक पहुंच जाता है तो नल के जल स्तर तेजी से कम होने लगता है। मई का अंत आते सरोवर का क्षेत्रफल पानी के सूखने से काफी कम हो जाता है। इससे उसमें मौजूद जीवन समाप्त प्राय: होने लगता है। गर्मी के बाद प्रकृति बदलती है और एक बार फिर से वही जीवन चक्र शुरू हो जाता है।  नल एक खास प्रकार की जैवविविधता को बचाये है। इस सरोवर में पिछली पक्षी गणनाएं बताती हैं कि नल में पक्षियों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। वर्ष 2002 में हुई गणना के मुताबिक यह संख्या 1.33 लाख थी। वर्ष 2004 में यह 1.84 लाख रही तो वर्ष 2006 में यह संख्या 2.52 लाख रही। वर्ष 2006 में बत्तख व हंसों की संख्या 1.19 लाख व क्रेक्स, रेहस व कूट की संख्या 82 हजार थी। इस सरोवर में प्रसिद्ध फ्लेमिंगो की संख्या 5820 आंकी गई।
कल का सागर आज का सरोवर
गुजरात के अहमदाबाद व सुंदर नगर जिलों से सटा नल सरोवर अभयारण्य अहमदाबाद से लगभग 65 किमी की दूरी पर है। सरोवर क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 300 तक टापू हैं जिनमें से 36 ऐसे बड़े टापू है जिनके अपने स्थानीय नाम हैं। नल की संरचना के बारे में भूगर्भवेताओं का मानना है कि जहां पर आज नल सरोवर है वह कभी समुद्र का हिस्सा था जो खंभात की खाड़ी को कच्छ की खाड़ी से जोड़ता था। भूगर्भीय परिवर्तनों से जब समुद्र पीछे चला गया तो यह एक बन्द संरचना में बदल गया। वर्षाकाल में जब यह भर जाता है तो 120 वर्ग किमी क्षेत्रफल की विशाल उथली झील में बदल जाता है। आकार में तब भले ही यह विशाल लगता हो किंतु इस सरोवर की गहराई अपने सर्वाधिक विस्तार के समय भी 2.5 मीटर से अधिक नही होने पाती है। इसका कारण यह है कि इससे अधिक मात्रा में जल इस बेसिन से बाहर बह निकलता है। शीतकाल आते-आते यह स्तर घट कर 1 से 1.5 मीटर तक रह जाता है।

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